ढाई अक्षर: जीवन के मूल तत्व

कबीर दास के दर्शन और उनकी सरल लेकिन गहन पंक्तियां सदियों से भारतीय समाज की सोच, आचार और व्यवहार को प्रभावित करती आई हैं। उनकी एक प्रसिद्ध पंक्ति “पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय; ढाई अक्षर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय” जीवन के सही अर्थ को समझने की एक महत्वपूर्ण दृष्टि प्रदान…

गार्गी और याज्ञवल्क्य का संवाद: आत्मज्ञान की ओर एक प्रेरणास्पद यात्रा

वेदों का महत्व भारतीय संस्कृति में अत्यधिक है, और उनमें से एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है ‘बृहदारण्यक उपनिषद्’. इस उपनिषद्द में गार्गी और याज्ञवल्क्य के बीच हुआ एक अद्वितीय संवाद है, जिसमें आत्मज्ञान की ओर होने वाली एक प्रेरणास्पद यात्रा दर्शाई गई है। यह संवाद गार्गी की जिज्ञासा और याज्ञवल्क्य के ज्ञान के प्रति दिखाता है…

साथीत्व का महत्व: गुरु, चेला, और मित्र

जीवन की व्यस्तता में, हम अक्सर ऐसे व्यक्तियों से मिलते हैं जो हम पर स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं। कुछ लोग हमारे गुरु बन जाते हैं, अपनी बुद्धि और अनुभव से हमारा मार्गदर्शन करते हैं। दूसरे लोग हमसे और हमारी शिक्षाओं से सीखते हुए हमारे शिष्य (चेला) बन जाते हैं। और फिर, ऐसे लोग भी होते…

दीपावली: पंच दिवसीय महोत्सव

भारतीय सांस्कृती में त्योहारों का महत्व बहुत अधिक होता है। वर्षभर कई अवसर आते हैं जब हम अपने परिवार और दोस्तों के साथ विशेष त्योहार मनाते हैं। यही त्योहार नहीं, बल्कि हमारे संबंधों का महत्व भी दिखाते हैं। दीपावली, जिसे हम रोशनी के त्योहार के रूप में जानते हैं, एक ऐतिहासिक और धार्मिक महोत्सव है…

दशहरा: दस दोषों को हराकर दस गुणों का पालन करने का प्रतीक

दशहरा, भारतीय सभ्यता के महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है, जो सुख, समृद्धि और वीरता का प्रतीक है। इस दिन, श्री राम ने 9 दिनों की लड़ाई के बाद दानव रावण को मारकर अपनी पत्नी देवी सीता को मुक्त किया, और देवी दुर्गा ने भी 9 दिनों की लड़ाई के बाद राक्षस महिषासुर को विजयी…

दशहरा: रावण की प्रवृत्ति का समूल नाश

रावण, रामायण महाकाव्य के अंतर्गत दिखाए गए एक राक्षस का नाम है, जिन्होंने प्राचीन भारतीय कथाओं में अपनी विशेष स्थिति बनाई। हम सभी जानते हैं कि रावण एक असुर थे, लेकिन इसके पीछे छुपी गहराई में कुछ और है। रावण एक प्रवृत्ति है रावण एक चरित्र नहीं, बल्कि एक प्रवृत्ति है, जो हर मनुष्य के…

अष्टावक्र की दृष्टि: शांति के पथ पर शरीर का अद्वितीय भूमिका

योग और ध्यान के जगत में, भारतीय संस्कृति ने हमें अनगिनत महापुरुषों की गरिमा दिलाई है, जिन्होंने आत्मज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की ओर हमारे पद दिखाया है। अष्टावक्र, एक प्रमुख योगी और ज्ञानी ऋषि थे, ने शरीर और आत्मा के संबंध को अपने उपदेशों में अद्वितीय तरीके से व्यक्त किया। “अपने शरीर से बंधा हुआ, साधक प्रयास…

बुद्धिमान व्यक्ति: अष्टावक्र के दर्शन का राह

भारतीय धार्मिक ग्रंथों में, जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने वाले अनगिनत शिक्षक हुए हैं। अनेक दर्शनिक और महात्मा ने जीवन की सच्चाई को खोजते हुए अपने अनुभवों के माध्यम से लोगों को जागरूक किया है। इनमें से एक दर्शनिक अष्टावक्र थे, जिनके उपदेशों में आत्मा के अस्तित्व की गहरी समझ है। उनके शब्दों से…

दुर्गा: शरीर रूपी दुर्ग में निवास करने वाली अमोघ शक्ति

“शरीर रूपी दुर्ग (किला) में निवास करने वाली परम शक्ति, जो कूटस्थ के माध्यम से अनुभव होती है, जो दसो इन्द्रियों को संचालित करती है, जो षट् (छः) चक्रों के संधान करने पर प्रकट होती है, जिनमें रज (ब्रम्हा), सत् (विष्णु) तथा तम (रुद्र) परिलक्षित होते हैं, जो हरि स्वरूपा (समस्त कष्टों को दूर करने…

अज्ञान से तुम मोती में चांदी देखते हो: आत्म-अज्ञान और लोभ का संबंध

आत्म-अज्ञान और लोभ, ये दोनों ही मानव मन के गहरे कोनों में छिपे होते हैं। अष्टावक्र, एक महान ऋषि, ने इस गहरे संबंध को बताया है – “जब अज्ञान से तुम मोती में चांदी देखते हो तो लोभ उत्पन्न होता है। आत्म-अज्ञान से उस संसार की इच्छा उत्पन्न होती है जहाँ इंद्रियाँ घूमती हैं।” इस…