आत्मज्ञान: भगवान, काल्पनिकता, और मुक्ति का संदेश

आज के बदलते जीवन में, मानवता के अटल सवाल हैं – “हम कौन हैं?” और “हमारा धर्म क्या है?” अष्टावक्र ऋषि ने इन प्रश्नों के सुनहरे उत्तर की ओर हमें बढ़ाया है। उनके विचार से हम जान सकते हैं कि भगवान, काल्पनिकता और मुक्ति के संदेश के साथ कैसे एक उच्च अद्वितीय स्थिति में पहुँच सकते हैं।

 

“जब आप जान लेते हैं कि आप भगवान हैं और जो है और जो नहीं है , दोनों काल्पनिक हैं, और अंततः आप इच्छा से मुक्त हो जाते हैं, तो फिर जानने, कहने या करने के लिए क्या बचता है ? -अष्टावक्र”

भगवान और काल्पनिकता:

अष्टावक्र ऋषि के अनुसार, हम सब भगवान हैं। यह सोचना काफी अद्भुत हो सकता है, लेकिन उनका सिद्धांत यह कहता है कि हमारी आत्मा ब्रह्म का ही अंश है। इसका मतलब है कि हमारी आत्मा अबीच्छिन्न और अविनाशी है, जैसे कि भगवान।

काल्पनिकता का संकेत करते हुए, अष्टावक्र ऋषि कहते हैं कि यह सारी दुनिया और हमारा अहम्-भाव केवल माया हैं। इसका मतलब है कि हमारा असली रूप उस अद्वितीय सत्य के अंश में समाहित है, जिसे हम आत्मा कहते हैं। काल्पनिक सत्य के चक्कर में फंसे रहने के बजाय, हमें अपनी आत्मा को समझने का प्रयास करना चाहिए।

मुक्ति का मार्ग:

अष्टावक्र ऋषि यह सिद्ध करते हैं कि जब हम जान लेते हैं कि हम भगवान हैं और सब कुछ, जो है और जो नहीं है, काल्पनिक है, तो हम आखिरकार इच्छा से मुक्त हो जाते हैं। मुक्ति का मार्ग अष्टावक्र ऋषि के उपदेश के माध्यम से प्रकट होता है।

आत्मज्ञान: मुक्ति की कुंजी:

आत्मज्ञान का प्राप्ति ही मुक्ति की कुंजी है। जब हम अपनी आत्मा को समझते हैं, तो हम अपने असली स्वरूप को जान लेते हैं और सभी काल्पनिकता के पर्दे को उठा देते हैं। हमारी आत्मा में अनंत ज्ञान, शक्ति, और आनंद होता है, जो हमें सच्ची मुक्ति की दिशा में ले जाता है।

क्रिया का मार्ग:

अष्टावक्र ऋषि के अनुसार, मुक्ति के लिए क्रिया की आवश्यकता नहीं है। हमें अपनी अंतरात्मा को जानने और समझने के लिए ध्यान और साधना का अभ्यास करना चाहिए, लेकिन इसके बाद हमें कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है। जब हम आत्मा के सत्य को पहचान लेते हैं, तो हम अपने कार्यों को इच्छा से करते हैं, बिना किसी प्रतिबंध या आवश्यकता के। हम सिर्फ अपने आदर्शों और उद्देश्यों के साथ एक साथ अस्तित्व में बने रहते हैं, बिना किसी बंधक के।

मनःशांति का मार्ग:

अष्टावक्र ऋषि के उपदेश के अनुसार, मनःशांति का मार्ग भी आत्मज्ञान की ओर बढ़ता है। हमें मानसिक स्थिति को नियंत्रित करने की प्रैक्टिस करनी चाहिए, ताकि हम अपने आत्मा को सुन सकें। योग और ध्यान के माध्यम से हम अपने मन को शांति, स्थिरता, और आत्मा के प्रति जागरूक कर सकते हैं। इससे हम अपने आदर्शों की प्राप्ति में मदद करते हैं और सच्ची मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ते हैं।

समापन:

अष्टावक्र ऋषि के सिद्धांतों से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमारा असली स्वरूप अत्यन्त महत्वपूर्ण है और सभी संबंधितता और काल्पनिकता बाद में आती है। मुक्ति का मार्ग आत्मज्ञान और मानःशांति के माध्यम से जाता है, जिससे हम अपने अद्वितीय स्वरूप को समझकर मुक्त हो सकते हैं। इसका अर्थ है कि हम अपने आत्मा को जानकर, कहकर या करके कुछ नहीं बचते हैं, क्योंकि हम आत्मा के परम ज्ञान के साथ एक हो जाते हैं।

अष्टावक्र ऋषि के उपदेश से हम यह समझते हैं कि हमारा उद्देश्य अपने आत्मा के अंश को पहचानने और मुक्ति की दिशा में अग्रसर होना चाहिए। इससे हम अपने जीवन को एक नई दिशा देते हैं, जिसमें सत्य और आत्मज्ञान हमारे मार्गदर्शक होते हैं।

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