अष्टावक्र की दृष्टि: शांति के पथ पर शरीर का अद्वितीय भूमिका

योग और ध्यान के जगत में, भारतीय संस्कृति ने हमें अनगिनत महापुरुषों की गरिमा दिलाई है, जिन्होंने आत्मज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की ओर हमारे पद दिखाया है। अष्टावक्र, एक प्रमुख योगी और ज्ञानी ऋषि थे, ने शरीर और आत्मा के संबंध को अपने उपदेशों में अद्वितीय तरीके से व्यक्त किया।
 
“अपने शरीर से बंधा हुआ, साधक प्रयास करने या शांत बैठने पर जोर देता है। लेकिन मैं अब यह नहीं मानता कि शरीर मेरा है, या मेरा नहीं है। और मैं खुश हूं. सोना, बैठना, चलना, मुझे कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं लगता। मैं सोता हूं, मैं बैठता हूं, मैं चलता हूं, और मैं खुश हूं। संघर्ष करते हुए या आराम करते हुए, न तो कुछ जीता है और न ही कुछ हारा है। मैंने जीत की ख़ुशी और हार का दुःख छोड़ दिया है। और मैं खुश हूं. क्योंकि सुख आते हैं और चले जाते हैं। मैंने कितनी बार उनकी चंचलता देखी है! परन्तु मैं ने भले बुरे को त्याग दिया है, और अब आनन्दित हूं। -अष्टावक्र”
 

अष्टावक्र का दर्शन:

अष्टावक्र जी के विचारों के अनुसार, शरीर से बंधक निकलकर आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने शारीरिक आत्म-संबंध को छोड़कर आत्मा की असली पहचान को बढ़ावा दिया। उन्होंने कहा, “मैं अब यह नहीं मानता कि शरीर मेरा है, या मेरा नहीं है।” इस विचार से वे हमें यह सिखाते हैं कि हमारा असली अंतरात्मा शरीर से अलग होता है।

 

आत्मा का अद्वितीयता:

अष्टावक्र की दृष्टि से, आत्मा अद्वितीय है। यह शरीर, मन, और बुद्धि के पार है, और इसका स्वरूप अनंत, शाश्वत, और निर्विकार है। इस प्रकार, वे यहां तक कहते हैं कि “मैं खुश हूं” क्योंकि वे शारीरिक और मानसिक दुखों से मुक्त हो जाते हैं, क्योंकि उन्होंने आत्मा के अद्वितीयता का अनुभव किया है।

आत्मज्ञान का मार्ग:

अष्टावक्र का दर्शन यह सिद्ध करते हैं कि आत्मज्ञान का मार्ग योग और ध्यान है, जिसमें हम अपने शरीर और मन को नियंत्रित करते हैं ताकि हम आत्मा के स्वरूप को पहचान सकें। यह साधना और ध्यान के माध्यम से होता है जिससे हम आत्मज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

आनंद का स्रोत:

अष्टावक्र जी के अनुसार, सुख और दुःख सिर्फ अनित्य हैं। वे कहते हैं, “मैंने जीत की ख़ुशी और हार का दुःख छोड़ दिया है।” इसका मतलब है कि वे अपने सुख और दुःख को अपने आत्मा के साथ नहीं जोड़ते हैं, और इसलिए वे स्थितिगत आत्मिक शांति का अनुभव करते हैं।

समापन:

अष्टावक्र की दृष्टि से हमें यह सिखने को मिलता है कि आत्मा शरीर और मन से अलग है, और योग और ध्यान के माध्यम से हम इस अद्वितीय आत्मा को पहचान सकते हैं। इस प्रकार, हम अपने जीवन में सुख और दुःख के साथ सही तरीके से निपट सकते हैं, और हमें शांति, आनंद, और समृद्धि का अनुभव होता है। अष्टावक्र के दर्शन हमें यह शिक्षा देते हैं कि हमारे जीवन का असली उद्देश्य आत्मा की खोज और उसके साथ एक मिलन है, जो शांति और सुख का स्रोत है। इसी तरीके से, हम अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण बना सकते हैं और अंततः आत्मज्ञान की प्राप्ति के माध्यम से आत्मा के साथ एक साक्षर और खुशहाल जीवन का आनंद उठा सकते हैं।

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