अष्टावक्र और मन: जागरूकता का महत्व

“इच्छा और द्वेष मन के होते हैं। मन कभी तुम्हारा नहीं होता. आप इसकी अशांति से मुक्त हैं। आप स्वयं जागरूकता हैं, कभी नहीं बदलते। आप जहां भी जाएं, खुश रहें.” – अष्टावक्र

मन – यह वास्तव में एक अद्वितीय और रहस्यमय अंग है, जिसे समझने का प्रयास करना हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है। अष्टावक्र महर्षि ने मन के महत्व को बड़े सुंदर शब्दों में व्यक्त किया है, जो हमें हमारे मन के बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम देखेंगे कि मन क्या होता है, और अष्टावक्र के इस उक्ति का हमारे जीवन पर कैसा प्रभाव पड़ता है।

मन: सोचने और इच्छाओं का द्वार

मन, हमारे जीवन का एक अद्वितीय हिस्सा है। यह वह स्थान है जहां हमारी सोचें, इच्छाएं और द्वेष उत्पन्न होते हैं। इच्छाएं हमारे मन की दिशा का प्रतिनिधित्व करती हैं, जबकि द्वेष हमारे असामान्य राग-द्वेष की गहरी भावना होती है। मन की इन गुणों के साथ, यह हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाता है।

मन कभी तुम्हारा नहीं होता

अष्टावक्र का कहना है कि मन कभी तुम्हारा नहीं होता। यहां पर एक महत्वपूर्ण बात है कि हमारा मन हमारा नहीं होता, और इसका मतलब है कि हमारी आत्मा और मन में अंतर होता है। हमारी आत्मा हमारे शारीरिक और मानसिक प्रकृति से अलग है, जबकि मन हमारे मानसिक प्रकृति का हिस्सा होता है।

आप इसकी अशांति से मुक्त हैं

अष्टावक्र का यह कथन भी हमारे मन के साथ जुड़ा है – हम अपने मन की अशांति से मुक्त हो सकते हैं। यह बात यहां पर याद दिलाने वाली है कि हमारा मन हमारे विचारों और भावनाओं का उत्पन्न स्त्रोत होता है, और हम अपने मन को नियंत्रित कर सकते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि हमारा मन किसी भी प्रकार के दुख और अस्तित्व का कारण नहीं होता है, बल्कि हमारी आत्मा का एक उपकरण होता है जिसे हम सही दिशा में नियंत्रित कर सकते हैं।

आप स्वयं जागरूकता हैं

अष्टावक्र का दोस्तावला यह है कि हम स्वयं जागरूक होते हैं। यह जागरूकता हमें हमारे मन के कार्यों को समझने में मदद करती है और हमें सही दिशा में बढ़ने की दिशा में मार्गदर्शन करती है। जब हम अपने मन के कार्यों को समझते हैं, तो हम अपने जीवन को सफलता की ओर ले जा सकते हैं।

आप जहां भी जाएं, खुश रहें

अष्टावक्र की आखिरी उक्ति हमें यह सिखाती है कि हमें चाहे हम जहां भी जाएं, खुश रहना चाहिए। यह बात हमें याद दिलाती है कि हमारी आनंद और खुशियाँ हमारे अंदर ही हैं, और यह हमारे बाहरी परिस्थितियों पर नहीं निर्भर करती हैं। हम अपने मन को नियंत्रित करके और यह समझकर कि हमारा खुद का आनंद हमारे हाथों में है, हमें हमेशा खुश और प्रसन्न रह सकते हैं।

अष्टावक्र का सन्देश

अष्टावक्र का यह सन्देश हमें यह सिखाता है कि हमारा मन हमारे आत्मा के साथ जुड़ा होता है, और हम अपने मन को नियंत्रित करके और जागरूक होकर अपने जीवन को सफलता की ओर ले जा सकते हैं। हमें यह याद दिलाना चाहिए कि हमारी खुशी हमारे अंदर है, और हम जब भी चाहें इसे प्राप्त कर सकते हैं।

 

समापन

अष्टावक्र के उक्तियों से हमें मानसिक शांति और सुख की दिशा में जाने का मार्ग मिलता है। हमें यह समझना चाहिए कि हमारा मन हमारे विचारों और भावनाओं का परिणाम होता है, और हम इसे नियंत्रित कर सकते हैं। इस प्रकार, हम अपने जीवन को सुखमय और सफल बना सकते हैं, चाहे हमारी परिस्थितियाँ कुछ भी हों।

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