ढाई अक्षर: जीवन के मूल तत्व

कबीर दास के दर्शन और उनकी सरल लेकिन गहन पंक्तियां सदियों से भारतीय समाज की सोच, आचार और व्यवहार को प्रभावित करती आई हैं। उनकी एक प्रसिद्ध पंक्ति “पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय; ढाई अक्षर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय” जीवन के सही अर्थ को समझने की एक महत्वपूर्ण दृष्टि प्रदान…

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कर नैनो दीदार महल में प्यारा है

ये तो सर्वविदित है की कबीर दास जी के हर एक शब्द में कुछ न कुछ ज्ञान की बातें छुपी रहती है। इस लिए उनके हर पद्य रहस्यवाद से ओत-प्रोत होता  है। ये रचना कबीर दास जी द्वारा समझाई गई ब्रह्माण्ड की एक अनोखी रचना हैं, जो की मनुष्य रूपी  इस श्रष्टी में बसी हैं।…

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काहे री नलिनी तूं कुम्हलानी

काहे री नलिनी तूं कुम्हलानी काहे री नलिनी तूं कुमिलानी । तेरे ही नालि सरोवर पानीं ॥ जल में उतपति जल में बास, जल में नलिनी तोर निवास । ना तलि तपति न ऊपरि आगि, तोर हेतु कहु कासनि लागि ॥ कहे ‘कबीर’ जे उदकि समान, ते नहिं मुए हमारे जान । शब्दार्थ सामान्य व्याख्या…

मँड़ये के चारण समधी दीन्हा | पुत्र व्यहिल माता

मँड़ये के चारण समधी दीन्हा मँड़ये के चारण समधी दीन्हा, पुत्र व्यहिल माता॥1॥ दुलहिन लीप चौक बैठारी। निर्भय पद परकासा॥2॥ भाते उलटि बरातिहिं खायो, भली बनी कुशलाता॥3॥ पाणिग्रहण भयो भौ मुँडन, सुषमनि सुरति समानी ॥4॥ कहहिं कबीर सुनो हो सन्तो, बूझो पण्डित ज्ञानी॥5॥ शब्दार्थ कबीर साहेब जी यहाँ जिस अनोखी विवाह का उल्लेख कर रहे…

गुरु ने मँगाई चेला | एक न्यामत लाना रे

गुरु ने मँगाई चेला | एक न्यामत लाना रे गुरु ने मँगाई चेला, एक न्यामत लाना रे॥ पहली भिक्षा अन्न ले आना, गाँव नगर के पास न जाना। चलती चक्की छोड के चेला, झोली भर के लाना॥ 1 ॥ दूसरी भिक्षा जल भर लाना, नदी कुँआ के पास न जाना। गंदा ऊजला छोड के चेला,…

झीनी-झीनी बीनी चदरिया | दास कबीर जतन करि ओढी

झीनी-झीनी बीनी चदरिया ॥ काहे कै ताना काहे कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया ॥ १॥ इडा पिङ्गला ताना भरनी, सुखमन तार से बीनी चदरिया ॥ २॥ आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया ॥ ३॥ साईं को सियत मास दस लागे, ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया ॥ ४॥ सो चादर…

शबद अनाहत बागा | अवधूत गगन मंडल घर कीजै

शबद अनाहत बागा अवधूत गगन मंडल घर कीजै।⁠अमृत झरै सदा सुख उपजै,बंक नाल रस पीवै ॥मूल बाँधि सर गगन समांनां,सुषमनं यों तन लागी ।कांम क्रोध दोऊ भया पलीता,तहां जोगणीं जागी ।।मनवां जाइ दरीबै बैठा,मगन भया रसि लागा।कहै कबीर जिय संसा नाँहीं,सबद अनाहद बागा ॥ आध्यात्मिक व्याख्या कबीर दास जी एक ऊंचा कोटि के साधक थे, वे…

ज्ञान-गुदड़ी | Kabir Ki Gyan Gudri | ज्ञान-गुदड़ी क्या है | ज्ञान-गुदड़ी का मतलब

इस पोस्ट में, मैं पहले ज्ञान गुदड़ी क्या है, जिसे कबीर दास जी ने धरमदास जी को बताया है उसको लिखने वाला हूँ | बाद में मैं ज्ञान गुदड़ी का अध्यात्मिक मतलब क्या है बताने वाला हूँ| मै चाहता हूँ की यह ज्ञान गुदड़ी का मतलब जन-जन तक सरल रूप में पहुँचे और सब इसका लाभ उठा सके| आशा करता हूँ आप लोगो को…