आत्मज्ञान: “मेरा” और “मैं” की भ्रांति को दूर करते हुए मुक्ति की ओर

“मेरा” और “मैं” – ये दो शब्द हमारे जीवन में गहरे रूप से प्रासंगिक हैं, लेकिन क्या ये हमारे आत्मा की असली स्वरूप को समझने में हमारी रोक रहे हैं? यदि हां, तो क्या हम वास्तविक मुक्ति की ओर अग्रसर हो सकते हैं? यह सवाल आध्यात्मिक जीवन के महत्वपूर्ण सवालों में से एक है, और अष्टावक्र मुनि के वचनों में हमें इसका महत्वपूर्ण उत्तर मिलता है।

“यदि आप मुक्ति की इच्छा रखते हैं, लेकिन फिर भी “मेरा” कहते हैं, यदि आपको लगता है कि आप शरीर हैं, तो आप एक बुद्धिमान व्यक्ति या साधक नहीं हैं। आप केवल एक व्यक्ति हैं जो कष्ट सहता है। हरि तुम्हें सिखाएं, या कमल से जन्मे ब्रह्मा, या स्वयं शिव! जब तक तुम सब कुछ भूल नहीं जाओगे, तुम कभी दिल में नहीं रहोगे। -अष्टावक्र”
 

अष्टावक्र मुनि का उपदेश:

अष्टावक्र मुनि ने अपने उपदेश में बताया कि अगर हम “मेरा” और “मैं” में अपने आप को बाँध देते हैं, तो हम वास्तविकता से दूर चले जाते हैं। वे कहते हैं कि यदि हम अपने शरीर को ही अपना आत्मा मानते हैं, तो हम बुद्धिमान या साधक नहीं हैं, बल्कि हम केवल दुखों को सहने वाले व्यक्ति हैं।

अष्टावक्र मुनि का उपदेश हमें यह याद दिलाता है कि हम शरीर के पर्यावरण में बसे हुए आत्मा हैं, और हमारा असली स्वरूप अविकारी और नित्य है। वे कहते हैं कि हमें अपने आत्मा को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए, और यही मुक्ति की ओर पहुंचने का मार्ग है।

आत्मा और शरीर का अंतर:

अष्टावक्र मुनि के उपदेश से हम यह समझते हैं कि आत्मा और शरीर में एक अंतर है। शरीर हमारे बाह्य जगत का हिस्सा है, जबकि आत्मा हमारी अंतरात्मा का स्वरूप है, जो अकेला ईश्वर के साथ संबंधित है। इस अंतर को समझने से हम अपने असली आत्मा की पहचान कर सकते हैं, जो अविनाशी और अनंत है।

 

असली ब्रह्मा, विष्णु, और शिव:

अष्टावक्र मुनि के उपदेश में उन्होंने कहा कि जब हम अपने आत्मा की पहचान करते हैं, तो हम असली ब्रह्मा, विष्णु, और शिव के साथ जुड़ जाते हैं। इसका मतलब है कि हमारा आत्मा ईश्वर का एक हिस्सा है, और हमारा असली स्वरूप दिव्यता का हिस्सा है।

मुक्ति की दिशा में अग्रसर होना:

अष्टावक्र मुनि के उपदेश से हम जीवन की असली उद्देश्य को पहचानते हैं – वही है, अपने “मेरा” और “मैं” की भ्रांति को छोड़कर अपने आत्मा की पहचान करना और मुक्ति की दिशा में अग्रसर होना।आत्मज्ञान का महत्व:

अष्टावक्र मुनि के उपदेश हमें आत्मग्यान के महत्व को समझाते हैं। आत्मग्यान का मतलब है हमारे आत्मा की असली पहचान, जिसमें हम अपने शरीर और इंद्रियों के परदे को हटाकर अपने असली स्वरूप को पहचानते हैं। यह आत्मग्यान ही हमें वास्तविक मुक्ति की दिशा में अग्रसर कर सकता है।

मुक्ति की ओर अग्रसर होने का मार्ग:

मुक्ति की ओर अग्रसर होने के लिए, हमें अपने शरीर, मन, और इंद्रियों के साथ विचार और ध्यान का साथ देना होगा। हमें अपने आत्मा की आवश्यकता को समझना होगा और अपने बाह्य जगत के मोह में न पड़ने का प्रयास करना होगा। ध्यान और साधना के माध्यम से हम अपने आत्मा की पहचान कर सकते हैं और मुक्ति की ओर बढ़ सकते हैं।

समापन:

अष्टावक्र मुनि के उपदेश से हमें यह सिखने को मिलता है कि मुक्ति की ओर बढ़ने के लिए हमें अपने आत्मा की पहचान करनी होती है, और “मेरा” और “मैं” की भ्रांति को छोड़कर हमें अपने आत्मा को जानना होता है। यह हमारे आत्मिक विकास की ओर महत्वपूर्ण कदम है, जो हमें मुक्ति की ओर ले जाता है।

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